25 May 2012

आज फिर

आज फिर जीवन की सरगोशियों में खो जाने को जी चाहता है

डरे हुए, थके हुए क़दमों से ही सही 
फिर मंजिल की ओर बढ जाने को जी चाहता है 
आज फिर जीवन की सरगोशियों में खो जाने को जी चाहता है

कहीं कोई मायूसियों का झोंका चीन न ले ये पल 
इन आरज़ुओं को फिर अपनाने को जी चाहता है 
आज फिर जीवन की सरगोशियों में खो जाने को जी चाहता है

हज़ार धोखों के घावों से ढका है ये दिल तो क्या 
फिर भी तुझ पर ऐतबार लुटाने को जी चाहता है 
आज फिर जीवन की सरगोशियों में खो जाने को जी चाहता है

1 comment:

  1. Nice poem....nice lines and touching thoughts....

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