13 May 2012

ना जाने कितने दिनों से


ना जाने कितने दिनों से


हज़ारों रंग उमड़ते हैं दिल में, इक नई तस्वीर बनाने को,
ना जाने कितने दिनों से ज़िन्दगी की किताब के पन्ने टटोले नहीं हैं
लाखों शब्द उमड़ते हैं मन में, फिर इक नया गीत बनाने को
ना जाने कितने दिनों से अनकहे नए तराने बोले नहीं हैं
हज़ारों तूफ़ान उमड़ते हैं मन में, उन हारी हुई ख्वाइशों को उड़ाने को
ना जाने कितने दिनों से नए आसमां के रास्ते खोले नहीं हैं

2 comments:

  1. LC thumne mere bhi soye, likhne aur painting karne ke,khuahisho ko tatola he....kash samay bhi sath detha....

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  2. Khawishein or life ka to bahut purana rishta to hai :)

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