उड़ने दो उन अरमानों को, जो कब से हैं उड़ने की ताक में
थके हुए, हारे हुए कब से हैं वो उस उड़ान की फ़िराक में
माना ज़िन्दगी के हैं बोझ बहुत,
माना रास्ते हैं अनजान बहुत,
पर कुछ पल अपने नाम सही
चाहे छोटी ही हो, पर कुछ पल की उड़ान सही
बहने दो उन कश्तियों को, जो कब स हैं इक सागर की तलाश में
दरी हुई, खोई हुई , कब से हैं वो लहरों की आस में
माना है जीवन सागर में तूफ़ान बहुत
माना मुश्किलों के हैं एहसान बहुत
पर कुछ पल एहसास सही
चाहे थोडा ही हो, पर कुछ पल का विश्वास सही.
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