In the memory of all those hours we spent in "cloud gazing" at one time or other :)
ऐ बादल इतना तो बतलाना,
आखिर तेरा कहाँ ठिकाना
कभी लगे पर्वतों को नापता है तू ,
कभी लगे सागर में है तुझे समाना
ऐ बादल इतना तो बतलाना ,
है हर पल रूप बदलता क्यूँ
कभी गाड़ी, कभी जानवर, कभी इन्सान सा लगता तू क्यों
कभी हमें भी इस बदलाव का सबब तो समझाना
ऐ बादल इतना तो बतलाना
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