2 Feb 2012

In the memory of all those hours we spent in "cloud gazing" at one time or other :)



ऐ बादल इतना तो बतलाना,

आखिर तेरा कहाँ ठिकाना 

कभी लगे पर्वतों को नापता है तू ,

कभी लगे सागर में है तुझे समाना 

ऐ बादल इतना तो बतलाना , 

है हर पल रूप बदलता क्यूँ 


कभी गाड़ी, कभी जानवर, कभी इन्सान सा लगता तू क्यों 


कभी हमें भी इस बदलाव का सबब तो समझाना 


ऐ बादल इतना तो बतलाना

No comments:

Post a Comment