इश्क का रंग
तेरे इश्क का रंग कुछ यूँ चढ़ा, मैं अपनी हस्ती भूल गई
बस तेरी एक तमन्ना है, बाकी हर ख्वाहिश धूल हुई
रहती हूँ तेरे ख्यालों में, दुनिया की कोई खबर नहीं
तेरे इश्क की खुली धूप में, जुदाई का अब कोई अब्र नहीं
लोकलाज कुछ ऐसी छूटी, हर हया का बन्धन तोड़ गई
कुछ ऐसी कशिश थी तेरी चाहत की, किस्मत का रुख भी मोड़ गई
छोड़ दिया उस बस्ती को, जहाँ तेरा मेरा साथ न था
ठुकरा दिया हर आशियाने को जहाँ तेरा एहसास न था
तेरे साथ की दीवानगी कुछ यूँ छाई, कांटों पर भी मैं चल गई
अपनी उमंगें याद नहीं अब, तेरे सांचे में यूँ ढल गई
पर इश्क में डूबे इस दिल को इलज़ाम मिला बेहोशी को
कौन समझाता इस जग को, वो आलम था मदहोशी का
तेरे मिलन की मस्ती कुछ ऐसी थी, हर दर्द को हँस कर सह गई
मोहब्बत का बस नूर है अब, बाकी हर तलब पीछे रह गई.
तेरे इश्क का रंग कुछ यूँ चढ़ा, मैं अपनी हस्ती भूल गई
बस तेरी एक तमन्ना है, बाकी हर ख्वाहिश धूल हुई.
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