18 Jan 2012

Why does it feel I have seen it all?


Why does it feel I have seen it all?


I know that a new morning beckons with a new call,
Then why does it feel I have seen it all?

The kindling of new romances, the exchange of speaking glances,
And then, the death of that love in the maze of nuances.
I know new leaves are born after every fall;
Then why does it feel I have seen it all?

Manipulations mixed in affection, wounds in the name of  perfection;
And finally, the inevitable murder of one’s own perception.
I know new landscapes are discovered in every stroll;
Then why does it feel I have seen it all?

The end and a beginning, the defeat and a winning
The rush of a touch that now seems degrading
I know that the life will finally have me again in its thrall..
But for now it feels I have seen it all.

7 Jan 2012

इश्क का रंग


इश्क का रंग

तेरे इश्क का रंग कुछ यूँ चढ़ा, मैं अपनी हस्ती भूल गई
बस तेरी एक तमन्ना है, बाकी हर ख्वाहिश धूल हुई 

रहती हूँ तेरे ख्यालों में, दुनिया की कोई खबर नहीं 
तेरे इश्क की खुली धूप में, जुदाई का अब कोई अब्र नहीं 
लोकलाज कुछ ऐसी छूटी, हर हया का बन्धन तोड़ गई 
कुछ ऐसी कशिश थी तेरी चाहत की, किस्मत का रुख भी मोड़ गई

छोड़ दिया उस बस्ती को, जहाँ तेरा मेरा साथ न था 
ठुकरा दिया हर आशियाने को जहाँ तेरा एहसास न था 
तेरे साथ की दीवानगी कुछ यूँ छाई, कांटों पर भी मैं चल गई 
अपनी उमंगें याद नहीं अब, तेरे सांचे में यूँ ढल गई 

पर इश्क में डूबे इस दिल को इलज़ाम मिला बेहोशी को 
कौन समझाता इस जग को, वो आलम था मदहोशी का 
तेरे मिलन की मस्ती कुछ ऐसी थी, हर दर्द को हँस कर सह गई 
मोहब्बत का बस नूर है अब, बाकी हर तलब पीछे रह गई.

तेरे इश्क का रंग कुछ यूँ चढ़ा, मैं अपनी हस्ती भूल गई
बस तेरी एक तमन्ना है, बाकी हर ख्वाहिश धूल हुई.